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Rahat Indori Ki Khubsoorat Shayariya - Part 2
हर à¤à¤• हरà¥à¤«à¤¼ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहबà¥à¤¬à¤¤ का à¤à¤°à¤® तोड़ दिया
मेरे कमरे में à¤à¥€ à¤à¤• "ताजमहल" रखा हैं
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सरहदों पर तनाव हे कà¥à¤¯à¤¾
ज़रा पता तो करो चà¥à¤¨à¤¾à¤µ हैं कà¥à¤¯à¤¾
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं
गाà¤à¤µ चलों अमरूदो का मौसम हैं
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काम सब गेरज़रà¥à¤°à¥€ हैं, जो सब करते हैं
और हम कà¥à¤› नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का à¤à¥€, उतना ही अदब करते हैं
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रोज़ तारों को नà¥à¤®à¤¾à¤‡à¤¶ में खलल पड़ता हैं
चाà¤à¤¦ पागल हैं अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¥‡à¤‚ में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से à¤à¥€ इबादत में खलल पड़ता हैं
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सफ़र की हद है वहां तक की कà¥à¤› निशान रहे
चले चलो की जहाठतक ये आसमान रहे
ये कà¥à¤¯à¤¾ उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कà¥à¤› थकान रहे
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उसकी कतà¥à¤¥à¤ˆ आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ वà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तà¥à¤® रूठीं,मà¥à¤ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिसà¥à¤¤à¤° विसà¥à¤¤à¤° सब
मà¥à¤à¤¸à¥‡ बिछड़ कर, वह à¤à¥€ कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गठकपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
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जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
बादशाहों से à¤à¥€ फेके हà¥à¤ सिकà¥à¤•à¥‡ ना लिà¤
हमने खैरात à¤à¥€ मांगी है तो खà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾à¤°à¥€ से
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