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27 Oct 2015

Rahat Indori Ki Khubsoorat Shayariya - Part 2

Posted By Ahmad Vaqas Khan (Admin) | Category : Shayari / Kavita / Poetry | Views : 2681
Rahat Indori Ki Khubsoorat Shayariya - Part 2

हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं 

आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं

मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया 

मेरे कमरे में भी एक "ताजमहल" रखा हैं 

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सरहदों पर तनाव हे क्या 

ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या

शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं 

गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं

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काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं

आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं

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रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं

उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

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सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे 

चले चलो की जहाँ तक ये आसमान  à¤°à¤¹à¥‡

ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल

मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे

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उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब

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जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से 

फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए 

हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से

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